"आइए दोस्तों आज हम लोग इस आर्टिकल के जरिए जानते हैं पंडित जवाहर लाल नेहरू हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री जी का जीवन परिचय  वा इतिहास "






जवाहर लाल नेहरू जी का जीवन परिचय।
जबहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता के पहले वा बाद में भारती राजनीति के मुख्य केंद्र बिंदु थे।वो महात्मा गांधी के सहायक के तौर पर भारतीय स्वतंत्रता अभियान के मुख्य नेता थे जो अंतक भारत को स्वतंत्र बनाने के लिए लड़ते रहे और स्वतंत्रता के बाद भी 1964 में अपनी मृत्यु तक देश की सेवा की। उन्हें अनुधिक भारत का रचयिता माना जाता है। पंडित संप्रदाय से होने के कारण उन्हें पंडित नेहरू की कहा जाता है, और बच्चों से ज्यादा लगाओ रखने के कारण बच्चों उन्हें"चाचा नेहरू"के नाम से पुकारते हैं।

नाम:-जवाहरलाल मोतीलाल नेहरू।

जन्म:-14 नवंबर 1889 इलाहाबाद, उत्तर पश्चिमी प्रांत ब्रिटिश भारत।

Died:-27 मई 1964(74 उम्र) नई दिल्ली भारत।

पिता:-मोतीलाल नेहरू।

माता:-स्वरूप रानी नेहरू।

विवाह:-कमला कौल।





शुरुआती जीवन:-

जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को ब्रिटिश भारत इलाहाबाद में हुआ। उनके पिता, मोतीलाल नेहरू एक धनी बैरिस्टर जो कश्मीरी पंडित समुदाय से थे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष चुने गए। उनकी माता स्वरूपरानी थुसू जो लाहौर में बसे एक सुपरिचित कश्मीरी परिवार से थी, मोतीलाल की दूसरी पत्नी थी देव पहली पत्नी की प्रसब के दौरान मौत हो गई थी। जवाहरलाल तीन बच्चों में से सबसे बड़े थे जिनमें बाकी दो लड़कियां थी।

बड़ी बहन,विजय लक्ष्मी, बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनी। सबसे छोटी बहन कृष्णा एक उल्लेखनीय लेखिका बनी और उन्होंने अपने भाई पर कई पुस्तकें लिखी।1890 के दशक में नेहरू परिवार जवाहरलाल नेहरू ने दुनिया के कुछ बेहतरीन स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की थी।

उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा हैरो से और कॉलेज की शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज लंदन से कि थी। इसके बाद उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की थी। इंग्लैंड में उन्होंने 7 साल व्यतीत किए जिसमें वहां के फेबियन समाजवाद और आयरिश राष्ट्रवाद के लिए तर्कसंगत दृष्टिकोण विकसित किया।
जवाहर लाल नेहरू 1912 में भारत लौटे और वकालत शुरू की। 1916 में उनकी शादी कमला नेहरू से हुई। 1917 में जवाहरलाल नेहरू होम रूल लीग में शामिल हो गए। राजनीति में उनकी असली दीक्षा दो साल बाद 1919 में हुई जब वो महात्मा गांधी के संपर्क में आए। उस समय महात्मा गांधी ने रोलेट अधिनियम के खिलाफ एक अभियान चालू किया था।नेहरू महात्मा गांधी के सक्रीय लेकिन शांतिपूर्ण,सविनय आंदोलन के प्रति काफी आकर्षित हुए और महात्मा गांधी जी के नजर में आ गए। अब यही से जवाहरलाल नेहरु जी का राजनीतिक जीवन चालू हुआ।

राजनीतिक जीवन:-
1962 से 1928 तक जवाहर लाल ने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव के रूप में सेवा की।
1928-29 में कांग्रेस के बर्षिक सत्र का आयोजन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में किया गया। उस सत्र में जवाहर लाल नेहरु और सुभाष चन्द्र बोस ने पूरी राजनीति और स्वतंत्रता की मां का समर्थन किया जबकि मोतीलाल नेहरू और अन्य नेता ब्रिटिश साम्राज्य के अंदर ही  प्रभुता संपन्न राज्य चाहते थे। इस मुद्दे के हल के लिए गांधीजी ने बीच का रास्ता निकाला और कहा कि ब्रिटेन को भारत के राज्य का दर्जा देने के लिए 2 साल का समय दिया जाएगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो कांग्रेस पुणे राजनैतिक स्वतंत्रता  के लिए राष्ट्रीय आंदोलन शुरू करेगी नेहरू और सुभाष चंद्र बोस ने मां की की इस समय को कम करके 1 साल कर दिया जाए और सरकार ने इसका कोई जवाब नहीं दिया।

दिसंबर 1929 में,कांग्रेस का बर्शिक अधिवेशन लाहौर में शुरू किया गया जिसे जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए इसी सत्र के दौरान एक प्रस्ताव भी पारित किया गया जिसमें पूर्ण स्वराज की मांग की गई और 26 जनवरी 1931 को लाहौर में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्र भारत का झंडा फहराया। आंदोलन काफी सफल रहा और ब्रिटिश सरकार को प्रमुख राजनीतिक सुधारों की आवश्यकता को सुधार करने के लिए मजबूर कर दिया।
1929 में जब लाहौर अधिवेशन में गांधी ने नेहरू को अध्यक्ष पद के लिए चुना था तब से 35 वर्षों तक 1964 में प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए मौत तक, 1962 में चीन से हारने के बावजूद नेहरू अपने देशवासियों के आदर्श बने रहे। राजनीति के प्रति उनका धर्मनिरपेक्ष रवैया गांधी के धार्मिक और पारंपरिक के दृष्टिकोण से अलग था। गांधी के विचारों ने उनके जीवन काल में भारतीय राजनीति को भ्रामक रूप से एक धार्मिक स्वरूप दे दिया था।

गांधी धार्मिक रूढ़िवादी प्रतीत होते थे। किंतु वस्तुतः सामाजिक उदारवादी थेजो हिंदू धर्म को धर्मनिरपेक्ष अप बनाने की चेष्टा कर रहे थे।


देश के इतिहास में एक ऐसा मौका जब महात्मा गांधी को स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के पद के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू में से किसी एक का चयन करना था। लौह पुरुष के सक्त और बागी तेवर के सामने नेहरू का विनम्र राष्ट्रीय तेवर भारी पड़ा और वो ना सिर्फ इस पद पर चुने गए बल्कि मैं सबसे लंबे समय तक विश्व के विशाल लोकतंत्र की बागडोर संभालने का गौरव हासिल भी हुआ।
जब वह अपनी माता के गर्भ में थे तब गंगा किनारे एक पंडित ने भविष्यवाणी की थी कि यह लड़का देश के लिए विनाशकारी साबित होगा पंडित ने धीरे से मोतीलाल को बताया कि वे अपनी पत्नी को जहर दे दे लेकिन जब फुसफुसको मोतीलाल की पत्नी ने सुना तो उन्होंने केवल "जहर"शब्द ही सुना तो मोतीलाल ने तर्क दिया कि वह अपने पुत्र का नाम जवाहर रखने के लिए कह रहे हैं इस तरह हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी का नाम जवाहर रखा गया।


विचार:-
नेहरू जी का विचार यह था कि नागरिकता देश की सेवा में निहित है। संस्कृति मन और आत्मा का विस्तार है, असफलता तभी आती है जब हम अपने आदर्श सिद्धांत और उद्देश्य को भूल जाते हैं,दूसरे के अनुभवों से लाभ उठाने वाला बुद्धिमान होता है, लोगों की कला उनके दिमाग का सही दर्पण है। इन्हीं विचारों के साथ नेहरू जी ने अपने जीवन में सफलता प्राप्त की और हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किए गए हैं।
दोस्तों मैं उम्मीद करता हूं कि यह लेख आप लोगों को जरूर पसंद आया होगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं यह लेख आप लोगों को कैसा लगा और अगला लेख किस सब्जेक्ट पर चाहिए।

Post a Comment

और नया पुराने